What is Seebeck Effect & Peltier Effect
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♦ सीबेक प्रभाव (Seebeck Effect) ♦
1821 ई० में जर्मन वैज्ञानिक सीबैक ने यह पता लगाया कि विद्युत धारा की उत्पत्ति ऊष्मा द्वारा भी की जा सकती है। इनके अनुसार –
यदि दो भिन्न धातुओं जैसे ताँबा और लोहा, के दो चालक तारों को जोड़कर एक बंद परिपथ बनाया जाए तथा उनकी एक संधि (junction) को गर्म और दूसरी को ठंडा रखा जाए तो परिपथ में क्षीण विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है। इस प्रभाव को सीबेक प्रभाव (Scebeck effect) कहा जाता है। परिपथ से प्रवाहित धारा को ताप वैद्युत धारा (thermo-electric current) तथा परिपथ में उत्पन्न वि० वा० बल को ताप विद्युत वाहक बल (thermo- electromotive force) कहा जाता है।असमान धातुओं से बने इस युग्म को ताप- वैद्युत-युग्म (thermocouple) कहा जाता है।
ताप वैद्युत-युग्म में ताप-वैद्युत धारा तथा ताप वि० वा० बल के मान युग्म की धातुओं की प्रकृति तथा उनकी संधियों के बीच के तापांतर पर निर्भर करते हैं।
सीबेक ने विभिन्न धातुओं की एक श्रेणी (series) इस प्रकार बनाई कि यदि श्रेणी के किन्हीं दो धातुओं का एक युग्म बनाया जाए तो ठंडी संधि पर ताप वैद्युत-धारा, श्रेणी में पहले आने वाली धातु से बाद में आनेवाली धातु की ओर प्रवाहित होती है। धातुओं की इस प्रकार की श्रेणी को ताप-वैद्युत श्रेणी (thermoelectric series) या सीबेक श्रेणी (Seebeck series) कहा जाता है। उदाहरण के लिए कुछ धातुओं की ताप-वैद्युत श्रेणी निम्नलिखित हैं-
‘एण्टिमनी, लोहा, चाँदी, सोना, टिन, सीसा, ताँबा, प्लैटिनम, कोबाल्ट, निकेल और बिस्मथ ।
What is Seebeck Effect & Peltier Effect
पेल्टियर प्रभाव (Peltier Effect)
1834 ई० में पेल्टियर ने एक ऐसे प्रभाव का पता लगाया जो सीबेक प्रभाव का विलोम होता है। प्रयोग करने पर पेल्टियर ने यह देखा कि जब दो भिन्न धातुओं से बने युग्म से होकर धारा प्रवाहित की जाती है तो एक संधि पर ऊष्मा का उत्पादन (evolution) होता है तथा दूसरी पर ऊष्मा का अवशोषण (absorption) होता है, अर्थात एक संधि गर्म हो जाती है तथा दूसरी ठंडी। धारा की दिशा विपरीत करने पर वह संधि जो सीधी धारा के समय गर्म हुई थी अब विपरीत धारा के कारण ठंडी हो जाती है। इसी प्रभाव को पेल्टियर प्रभाव (Peltier effect) कहा जाता है।
पेल्टियर तथा जूल प्रभावों में अंतर (Difference between Peltier and Joule Effects)
(i) जूल प्रभाव में हमेशा ऊष्मा उत्पन्न होती है जबकि पेल्टियर प्रभाव में यदि एक जंक्शन गर्म होता है तो दूसरा जंक्शन ठंडा भी होता है।
(ii) जूल प्रभाव अनुत्क्रमणीय (irreversible) होता है, अर्थात विद्युत धारा की दिशा चाहे जो भी हो, प्रत्येक अवस्था में ऊष्मा उत्पन्न होती है। परंतु, पेल्टियर प्रभाव उत्क्रमणीय (reversible) है, अर्थात किसी जंक्शन का गर्म या ठंडा होना धारा की दिशा बदल जाने पर बदल जाता है।
(iii) जूल प्रभाव में ऊष्मा की उत्पत्ति पूरे परिपथ में होती है जबकि पेल्टियर प्रभाव में केवल जंक्शन ही गर्म या ठंडे होते हैं।
(iv) जूल प्रभाव किसी भी धातु में हो सकता है जबकि पेल्टियर प्रभाव केवल ताप-वैद्युत-युग्म (thermocouple) के जंक्शन पर ही संभव है, केवल एक धातु में नहीं।
(v) पेल्टियर प्रभाव में अवशोषित अथवा उत्पन्न ऊष्मा का परिमाण प्रवाहित विद्युत धारा के समानुपाती होता है जबकि जूल ऊष्मा प्रवाहित धारा के वर्ग के तथा प्रतिरोध का भी समानुपाती होता है।
पेल्टियर गुणांक (Peltier Coefficient)
प्रयोगों से देखा गया है कि ताप वैद्युत-युग्म के जंक्शन पर उत्पादित अथवा अवशोषित ऊष्मा का परिमाण W उससे प्रवाहित विद्युत आवेश Q (अर्थात It ) के समानुपाती होता है, अर्थात
W ∝ Q
W = πQ
W = πiQ
यहाँ π एक नियतांक है जिसे पेल्टियर गुणांक (Peltier coefficient) कहा जाता है।
यदि Q = 1 कूलॉम हो तो W = π जूल
अतः,
दो विभिन्न धातुओं के लिए पेल्टियर गुणांक संख्यात्मक रूप में अवशोषित अथवा उत्पादित ऊष्मा का जूल में वह परिमाण है जो एक कूलॉम आवेश के प्रवाहित होने पर अवशोषित अथवा उत्पादित होता है।
- पेल्टियर नियतांक π का SI मात्रक volt होता है तथा इसका मान जंक्शन के ताप पर निर्भर करता है। ताप बढ़ने से π का मान बढ़ता है।
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टॉमसन प्रभाव (Thomson Effect )
टॉमसन नामक वैज्ञानिक ने 1856 ई० में यह दर्शाया कि जब किसी धातु की छड़ में, जिसके विभिन्न भाग विभिन्न ताप पर हैं, विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो छड़ की पूरी लंबाई में ऊष्मा का अवशोषण अथवा उत्पादन होता है। इस प्रभाव को टॉमसन प्रभाव कहते हैं।
• सीसा (lead) में टॉमसन प्रभाव देखने को नहीं मिलता।
• टॉमसन प्रभाव उत्क्रमणीय है।
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