Difference between n-Type and p-Type semiconductor
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♦ अर्द्ध-चालक युक्तियाँ (Semi-conductor Devices) ♦
अर्द्धचालक (Semiconductor) :- ऐसा पदार्थ जिसकी चालकता चालक तथा अचालक के बीच होती है, अर्द्धचालक कहलाता है। ऐसे पदार्थ में इलेक्ट्रॉनिक संरचना इस प्रकार की होती है कि कहीं इलेक्ट्रॉन मुक्त हो जाता है और कहीं रिक्त (Hole) बन जाता है।
• इनकी विद्युत चालकता सामान्य ताप पर चालक (Conductors) व विद्युत रोधी (Insulators) पदार्थों की चालकताओं के मध्य होती है।
• जर्मेनियम और सिलिकॉन ऐसे मुख्य पदार्थ है।
• इनका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स व ट्रांजिस्टर उपकरणों में होता है।
• ताप बढ़ने पर इसकी चालकता बढ़ती है।
अर्द्ध-चालकों के प्रकार :-
(i) निज अथवा आन्तरिक अर्द्ध-चालक (Intrinsic Semi-conductors)
(ii) बाह्य अर्द्ध-चालक (Extrinsic Semi-conductors)
→ शुद्ध अर्द्धचालक को निज अर्द्धचालक तथा अपद्रव्य युक्त अर्द्धचालक बाह्य अर्द्धचालक कहलाता है।
• अपद्रव्य मिलाये जाने की प्रक्रिया को डोपिंग (Doping) कहते है।
बाह्य अर्द्धचालक दो प्रकार के होते है।
(i) n – प्रकार के अर्द्धचालक (n – Type Semi Conductor)
(ii) p – प्रकार के अर्द्धचालक (p – Type Semi Conductor)
(i) n – प्रकार के अर्द्धचालक :- ऐसे बाह्य – अर्द्धचालक जिनमें विद्युत का प्रवाह युक्त इलेक्ट्रोनों की संख्या बढ़ जाने के कारण होता है, n – प्रकार के अर्द्धचालक कहलाते है।
• जब शुद्ध अर्द्धचालक (जैसे-जर्मेनियम) में पंच संयोजी अपद्रव्य (जैसे-आर्सेनिक) मिला दिया जाता है, तो इस प्रकार के अर्द्धचालक प्राप्त होते है।
याद रखें:- पंच संयोजी अपद्रव्य परमाणु का ‘दाता’ (Donar) तथा त्रिसंयोजी अपद्रव्य ‘परमाणु- ग्राही’ (Acceptor) कहलाते है।
(ii) p – प्रकार के अर्द्धचालक :- ऐसे बाह्य – अर्द्धचालक जिसमें विद्युत का प्रवाह कोटरों (Hole) के गति के कारण होता है, p – प्रकार के अर्द्धचालक कहलाता है।
• शुद्ध अर्द्धचालक (जैसे-जर्मेनियम) में त्रिसंयोजी अपद्रव्य (जैसे-एल्युमीनियम ) मिलाने से ऐसे अर्द्धचालक प्राप्त होते है।
• इसमें धारा प्रवाह मुख्य रूप से कोटरों (Hole) द्वारा होती है।
n-Type एवं p-Type अर्द्धचालक में अंतर :-
n- टाइप के अर्द्धचालक | p-टाइप के अर्द्धचालक |
(i) यह शुद्ध या नैज अर्द्धचालक में पाँच संयोजकता वाले परमाणुओं (जैसे Sb, As, P आदि) की अशुद्धि मिलाने से बनता है। | (i) यह शुद्ध या नैज अर्द्धचालक में तीन संयोजकता वाले परमाणुओं (जैसे Al, B, In आदि) की अशुद्धि मिलाने से बनता है। |
(ii) इसमें बहुसंख्यक आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन होते हैं। | (ii) इसमें अल्पसंख्यक आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन होते हैं। |
(iii) इसमें अल्पसंख्यक आवेश वाहक होल होते हैं। | (iii) इसमें बहुसख्यक आवेश वाहक होल होते हैं। |
(iv) इसमें इलेक्ट्रॉन का संख्या घनत्व होल के संख्या घनत्व से बहुत अधिक होता है। अर्थात ne >> nh | (iv) इसमें होल का संख्या घनत्व इलेक्ट्रॉन के संख्या घनत्व से बहुत अधिक होता है। अर्थात nh >>ne |
संधि डायोड (Junction Diode) :-
जब p-प्रकार के अर्द्धचालक और n-प्रकार के अर्द्धचालक को जोड़ दिया जाता है, तो इस तरह प्राप्त युक्ति को संधि डायोड कहते है।
p-n संधि डायोड की क्रिया :-
संधि-क्षेत्र में Depletion layer की स्थापना के कारण यहाँ एक विभवांतर उत्पन्न हो जाता है। यह विभवांतर इस क्षेत्र में एक विद्युतीय क्षेत्र (Ei) (n-type से p-type की ओर) पैदा करता है। कुछ क्षण बाद यह विद्युतीय क्षेत्र (Ei) इतना प्रबल हो जाता है कि स्वतंत्र आवेशों का एक-दूसरे की ओर विसरण बंद हो जाता है।
• इसका प्रयोग मुख्यतः ऋजीकरण (rectification) संसूचन आदि में किया जाता है।
डायोड वाल्व (Diode Valvlle) :-
सन् 1904 में वैज्ञानिक फ्लेमिंग द्वारा निर्मित यह एक ऐसी निर्वात् नलिका है, जिसमें केवल दो ही इलेक्ट्रोड (तन्तु एवं प्लेट) होते है। तन्तु टंगस्टन का एक पतला तार होता है, जिस पर बेरियम ऑक्साइड का लेप लगा होता है। इसे बैटरी से गर्म करने पर इलेक्ट्रॉन निकलते है, जो धनावेशित प्लेट की ओर चलते है।
• डायोड वाल्व को ऋजुकारी (Rectifier) के रूप में प्रयुक्त करते है, अर्थात् इसके द्वारा प्रत्यावर्ती धारा (AC) को दिष्ट धारा (DC) में बदलते है।
ट्रायोड वाल्व (Triode Valve) :-
यह तीन इलेक्ट्रोड प्लेट ग्रिड और तन्तु वाली एक निर्वात् नलिका है, जिसका निर्माण सन् 1907 में अमेरिका के केली डी फॉरेस्ट ने किया था।
• ट्रायोड वाल्व को प्रवर्द्धक (Amplifier), दोलित्र (Oscillator), प्रेषित (Transmitter) एवं संसूचक (Detector) की तरह प्रयोग किया जाता है।
जेनर डायोड (Zener Diode) :-
जेनर डायोड विशेष रूप से निर्मित ऐसे p-n संधि डायोड होते हैं जो बिना खराब हुए उत्क्रम भंजक वोल्टेज पर निरंतर कार्य कर सके। चित्र (a) में जेनर डायोड का प्रतीक दर्शाया गया है।
जब p – क्षेत्र में ग्राही तथा n – क्षेत्र में दाता अशुद्धियों का अधिक मात्रा में अपमिश्रण किया जाता है, तो अशुद्धि के उच्च घनत्व के कारण अवक्षय पर्त की चौड़ाई कम (लगभग 10-6 m की कोटि की) हो जाती है, तथा संधि में विद्युत क्षेत्र अधिक (लगभग 5 × 10⁶ V m -1 की कोटि का) हो जाता है। चूँकि संधि की चौड़ाई बहुत कम होती है, अतः कम उत्क्रम वोल्टता से ही संधि पर अत्यंत प्रबल विद्युत क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। यह प्रबल विद्युत क्षेत्र संयोजी बैंड में से इलेक्ट्रॉन को बाहर निकाल सकता है जो अवक्षय पर्त से होकर n क्षेत्र की ओर चल सकता है। चित्र (b) में जेनर डायोड का I-V अभिलाक्षणिक वक्र दिखाया गया है।
प्रकाश उत्सर्जक डायोड { Light Emitting Diode (LED) }:-
यह एक p-n संधि डायोड होता है जो अग्र अभिनत संयोजन में प्रकाश उत्सर्जित करता है। इसे नीचे चित्र में दिखाया गया है। इसमें p – n संधि को जब अग्र अभिनत संयोजन में रखा जाता है तो -क्षेत्र से मुक्त इलेक्ट्रॉन एवं p-क्षेत्र से छिद्र p-n संधि की ओर चलते हैं तथा संधि पर ये एक-दूसरे को उदासीन करके स्वयं निम्न ऊर्जा स्तर में चले जाते हैं। इनकी ऊर्जा में जो कमी होती है वह ऊर्जा प्रकाश से दूर में बाहर निकलता है।
LED के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-
(i) कम प्रचालन वोल्टता
(ii) शीघ्र क्रिया
(iii) लगभग एकवर्णी प्रकाश ।
LED का उपयोग मुख्यतः निम्नलिखित कार्यों में किया जाता है।
(i) Burglar Alarm में
(ii) Calculators में
(iii) Switch board में
(iv) digital घड़ी बनाने में
(v) Telephone में
n-Type and p-Type semiconductor
ट्रांजिस्टर (Transistor)
वह युक्ति जिसके द्वारा वोल्टेज, शक्ति तथा धारा का प्रवर्धन किया जा सकता है उसे ट्रांजिस्टर कहते है।
या
p तथा n – प्रकार के अर्द्ध-चालकों से बनी एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक युक्ति है जो ट्रायोड वाल्व के स्थान पर प्रयुक्त की जाती है, ट्रांजिस्टर कहलाता है।
• इसका आविष्कार सर्वप्रथम सन् 1948 में अमेरिकन वैज्ञानिकों बार्डीन (Bardeen), शोकले (Shokley) तथा बेरिन (W. H. Barattain) ने किया था। इसके लिये इन्हें सन् 1956 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
ट्रांजिस्टर दो प्रकार के होते हैं।
(i) p – n – p ट्रांजिस्टर
(ii) n – p – n ट्रांजिस्टर
1. p – n – p ट्रांजिस्टर :- यह ट्रांजिस्टर n – type अर्द्धचालक की पतली बीच परत को P – type अर्द्धचालक की मोटी परतों के दबाकर बनाया जाता है। इस प्रकार इसमें बीच का n क्षेत्र आधार और बायीं ओर का P क्षेत्र उत्सर्जक तथा दायीं ओर का P क्षेत्र संग्राहक कहलाता है।
परिपथ व्याख्या :-
चित्र के अनुसार परिपथ तैयार करते हैं जिसमें उत्सर्जक, आधार संधि को बैटरी B1 द्वारा अग्र अभिनति बनाते हैं, जिससे इसकी अवक्षय परत अत्यंत पतली हो जाने के कारण यह आवेश वाहकों के मार्ग में न्यूनतम प्रतिरोध आरोपित करती है। बैटरी B2 द्वारा आधार संग्राहक संधि को उत्क्रम अभिनत बनाते हैं जिससे इसकी अवक्षय परत हमेशा मोटी हो जाने से यह धारा के मार्ग में अधिकतम प्रतिरोध आरोपित करती है।
कार्य विधि :- उत्सर्जक आधार संधि के अग्र अभिननत में होने के कारण उत्सर्जक के कोटर आधार को पार करके संग्राहक में जाने लगते हैं इस प्रकार लगभग 2 % कोटर आधार में चालक इलेक्ट्रोनों से संयोग करके उदासीन हो जाते हैं। जैसे ही कोई कोटर बिंदु C पर पहुंचता है, वैसे ही बैटरी B2 के ॠण ध्रुव से एक इलेक्ट्रॉन निकालकर कोटर को उदासीन कर देता है जिससे संग्राहक धारा Ic प्राप्त होती है। जैसे ही आधार में किसी चालक इलेक्ट्रॉन की कमी होती है वैसे ही बैटरी B1 के ॠण ध्रुव से एक इलेक्ट्रॉन निकालकर पूरा कर देता है जिससे सूक्ष्म आधार धारा IB प्रवाहित होती है। जैसे ही उत्सर्जक में कोटर की कमी होती है वैसे ही जंक्शन के समीप एक सहसंयोजक बंध टूट जाता है तथा दोनों इलेक्ट्रॉन बैटरी B1 के धन ध्रुव द्वारा आकर्षित होते हैं, जिससे उत्सर्जक धारा IE प्राप्त हो जाती है।
चित्र से,
IE = IB + Ic
2. n – p – n ट्रांजिस्टर :- यह ट्रांजिस्टर P – type अर्द्धचालक की पतली बीच परत को n – type अर्द्धचालक की मोटी परतों के दबाकर बनाया जाता है। इस प्रकार इसमें बीच का P क्षेत्र आधार और बायीं ओर का n क्षेत्र उत्सर्जक तथा दायीं ओर का n क्षेत्र संग्राहक कहलाता है।
परिपथ व्याख्या :-
चित्र के अनुसार परिपथ तैयार करते हैं जिसमें उत्सर्जक, आधार संधि को बैटरी B1 द्वारा अग्र अभिनति बनाते हैं, जिससे इसकी अवक्षय परत अत्यंत पतली हो जाने के कारण यह आवेश वाहकों के मार्ग में न्यूनतम प्रतिरोध आरोपित करती है। बैटरी B2 द्वारा आधार संग्राहक संधि को उत्क्रम अभिनत बनाते हैं जिससे इसकी अवक्षय परत हमेशा मोटी हो जाने से यह धारा के मार्ग में अधिकतम प्रतिरोध आरोपित करती है।
कार्य विधि :- उत्सर्जक आधार संधि के अग्र अभिननत में होने के कारण उत्सर्जक के चालक इलेक्ट्रॉन आधार को पार करके संग्राहक में जाने लगते है जिससे लगभग 2 % चालक इलेक्ट्रॉन आधार में कोटरों से संयोग करके उदासीन हो जाते हैं। जैसे ही कोई चालक इलेक्ट्रॉन बिंदु C पर पहुंचता है, वैसे ही वह बैटरी B2 के धन ध्रुव द्वारा आकर्षित हो जाते हैं जिससे संग्राहक धारा Ic प्रवाहित होती है। जैसे ही आधार में किसी कोटर की कमी होती है वैसे ही आधार में एक सहसंयोजक बंध टूट जाता है तथा दोनों इलेक्ट्रॉन बैटरी B1 के धन ध्रुव द्वारा आकर्षित होते हैं, तथा सूक्ष्म आधार धारा IB प्रवाहित होती है। जैसे ही उत्सर्जक में किसी चालक इलेक्ट्रॉन की कमी होती है, वैसे ही बैटरी B1 के ॠण ध्रुव से एक इलेक्ट्रॉन निकालकर उत्सर्जक में पहुंचकर इस कमी को पूरा कर देता है। जिससे उत्सर्जक धारा Ic प्राप्त हो जाती है।
चित्र से,
IE = IB + Ic
जहां
IE = उत्सर्जक धारा
IB = आधार धारा
Ic = संग्राहक धारा
ट्रांजिस्टर के लाक्षणिक वक्र
ये तीन प्रकार के होते है –
1. उभयनिष्ठ आधार विन्यास (CB)
2. उभयनिष्ठ उत्सर्जन विन्यास (CE)
3. उभयनिष्ट विन्यास संग्राहक (CC)
n-Type and p-Type semiconductor
प्रश्न :- किसी अर्द्धचालक को गर्म करने पर इसका प्रतिरोध –
(a) कम होती है।
(b) बढ़ती है।
(c) समान रहती है।
(d) कोई नहीं
n-Type and p-Type semiconductor
प्रश्न :- किसी अर्द्धचालक के ताप में वृद्धि होने पर इसकी वैद्युत चालकता-
(a) बढ़ती है।
(b) कम होती है।
(c) समान रहती है।
(d) कोई नहीं।
प्रश्न :- कोटर (holes) विद्यमान हो सकते है –
(a) धातुओं में
(b) अचालकों में
(c) अर्द्धचालकों में
(d) ट्रॉजिस्टर में
प्रश्न :- P-N संधि डायोड एक अचालक के रूप में कार्य करता है, यदि इसको जोड़े-
(a) A-C से
(b) अग्र-अभिनत से
(c) उत्क्रम अभिनत से
(d) कोई नहीं
प्रश्न :- डायनेमों का आर्मेचर बना होता है –
(a) लौह चुम्बकीय पदार्थ से
(b) इस्पात पदार्थ से
(c) Cu पदार्थ से
(d) पोर्सिलेन पदार्थ से
प्रश्न :- प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा में परिवर्तित किया जाता है
(a) डायनेमों द्वारा
(c) रेक्टिफायर द्वारा
(b) ट्रान्सफॉर्मर द्वारा
(d) मोटर द्वारा
n-Type and p-Type semiconductor
प्रश्न :- दाता अपद्रव्य परमाणु की संयोजकता होती है।
(a) 3
(b) 4
(c) 5
(d) 6
प्रश्न :- एक p-प्रकार अर्द्धचालक होता है।
(A) घनावेशित
(B) ॠणावेशित
(C) अनावेशित
(D) परम शून्य ताप पर अनावेशित लेकिन उच्च तापमानों पर आवेशि
प्रश्न :- n- टाइप का जर्मेनियम प्राप्त करने के लिए जर्मेनियम में मिलाया गया अपद्रव्य होना चाहिए।
(A) त्रिसंयोजक
(B) चतुः संयोजक
(C) पंच संयोजक
(D) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न :- डायोड का उपयोग करते हैं एक
(A) प्रवर्धक की तरह
(B) दोलक की तरह
(C) मॉडुलेटर की तरह
(D) रेक्टिफायर की तरह
प्रश्न :- p-टाइप के अर्द्धचालक में मुख्य धारा वाहक होता है।
(A) इलेक्ट्रॉन
(B) होल
(C) फोटॉन
(D) प्रोटॉन
प्रश्न :- n – p – n ट्रांजिस्टर में उत्सर्जक धारा iE आधार धारा iB तथा संग्राहक धारा iC में संबंध है।
(A) iC = iE + iB
(B) iB = iE – iC
(C) iE = iC – iB
(D) iB = iE + iC
n-Type and p-Type semiconductor
प्रश्न :- P – प्रकार के अर्द्धचालकों के लिए अशुद्ध तत्त्व के रूप में प्रयोग किया जाता है।
(A) बोरॉन
(B) बिस्मथ
(C) आर्सेनिक
(D) फॉस्फोरस
प्रश्न :- डायोड का उपयोग किया जाता है।
(A) प्रवर्धक की तरह
(C) मॉडुलेटर की तरह
(B) दोलक की तरह
(D) दिष्टकारी की तरह
प्रश्न :- डायोड वह प्रयुक्ति है जो धारा को –
(a) एक दिशा में प्रवाहित होने देती है।
(b) दोनों दिशाओं में प्रवाहित होने देती है।
(c) किसी भी दिशा में प्रवाहित होने देती है।
(d) उपयुक्त में कोई नहीं।
प्रश्न :- ट्रांजिस्टर बनाये जाते है।
(a) धातु से
(b) विधुतरोधी से
(c) मिश्रित अर्द्धचालक से
(c) उपधातु से
प्रश्न :- PN – जंक्शन व्यवहार करता है –
(a) पेन्टोड की तरह
(b) टेट्रोड की तरह
(c) ट्रायोड की तरह
(d) डायोड की तरह
प्रश्न :- ट्रांजिस्टर के जंक्शन होते है –
(a) तीन जंक्शन
(b) दो जंक्शन
(c) एक जंक्शन
(d) चार जंक्शन
n-Type and p-Type semiconductor
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