BSEB Board 12th Physics Van-De Graff Generator & Dielectric || वान-डी ग्राफ जनित्र & परावैद्युत
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BSEB Board 12th Physics Van-De Graff Generator & Dielectric ,

♦ परावैद्युत (Dielectric) ♦

परावैद्युत वे पदार्थ होते हैं जो अपने में से आवेश को प्रवाहित नहीं होने देते हैं लेकिन विद्युत प्रभाव का प्रदर्शन करते हैं परावैद्युत कहलाता है।

उदाहरण : – कागज, मोम, लकड़ी, प्लास्टिक आदि।

परावैद्युत के प्रकार :-

(i) ध्रुवीय परावैद्युत

(ii) अध्रुवीय परावैद्युत

(i) ध्रुवीय परावैद्युत :- ध्रुवीय परावैद्युत वे पदार्थ होते हैं जिनके अणुओं के धनावेशो का केंद्र और ऋणावेश का केंद्र संपाति नहीं होते हैं।

Ex :- H2O, HCl आदि।

(ii) अध्रुवीय परावैद्युत :- अध्रुवीय परावैद्युत वे पदार्थ होते हैं जिनके अणुओं के धनावेशो का केंद्र और ऋणावेश का केंद्र संपाति होते हैं।

Ex :- H2, O2 ,CO2 आदि।

परावैद्युत का ध्रुवण :- बाह्य विद्युत क्षेत्र लगाए जाने पर अध्रुवीय परावैद्युत के अणुओं के धनावेशो का केंद्र और ऋणावेशो का केंद्र विस्थापित हो जाने की क्रिया को परावैद्युत का ध्रुवण कहते हैं।

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वान-डी ग्राफ जनित्र (Van-De Graff Generator) :-

सन् 1931 में प्रोफेसर आर. जे. वान-डी ग्राफ ने ऐसी विद्युत् उत्पादक मशीन अर्थात् जनित्र का निर्माण किया जिससे उच्च विभावांतर (10 लाख वोल्ट या इससे भी अधिक) उत्पन्न किया जा सकता है। इस जनित्र को उनके नाम पर ही वान-डी प्राफ जनित्र कहते हैं।

सिद्धांत :-

(i) वान-डी ग्राफ जनित्र की कार्य विधि नुकीले भागों की क्रिया पर आधारित है नुकीले सिरे पर आवेश का पृष्ठ घनत्व अधिक होने पर धन आवेशित विद्युत पवन उत्पन्न हो जाती है।

(ii) किसी गोलीय चालक की धारिता (C = 4π∈0) R होती है। चालक की धारिता अधिक होने के लिए चालक की त्रिज्या अधिक होना चाहिए।

रचना/ बनावट :-

दिखाए गए चित्र में वन डी ग्राफ जेनरेटर की रचना प्रदर्शित है। इसमें 5 मीटर व्यास का धातु का खोखला गोला होता है जो विद्युत रोधी स्तंभ पर टिका होता है। P1 तथा P2 दो घिरनिया है जिससे होकर विद्युत रोधी पदार्थ (जैसे रबर या रेशम) की एक पट्टी गुजरती है नीचले घिरनी (P1) को अन्य मशीन द्वारा घुमाया जाता है जिससे बेल्ट ऊर्ध्वाधर तल में घूमने लगता है। C1 तथा C2 धातु की दो कंघिया है। C1 को फुहार कंघी (Spray Comb) तथा C2 को संग्राहक कंघी (Collection Comb) कहा जाता है । C1 कंघी को एक उच्च विभव की बैटरी के धन सिरे से तथा C2 कंघी को गोले S से जोड़ दिया जाता है।

कार्य विधि :-

बैटरी द्वारा कंघी C1 को आवेश दिया जाता है। C1 पर आवेश का पृष्ठ घनत्व अधिक होने के कारण धन आवेश युक्त विद्युत पवन चलने लगती है जिससे पट्टी के आगे का भाग धन आवेशित हो जाता है और यह ऊपर की ओर चलने लगता है। जब यह भाग संग्राहक कंघी C2 के पास पहुंचता है तो कंघी के सिरों पर ऋण आवेश तथा गोले के बाहर पृष्ठ पर धनावेश प्रेरित कर देता है। कंघी C2 के ऊपर जाने वाली पट्टी का भाग अनावेशित हो जाता है।जब यह भाग पुनः घूमकर C1 के पास आता है तो धन आवेशित हो जाता है। यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है जिससे गोला S अधिक से अधिक आवेश प्राप्त करता है। इसका विभव 10 लाख वोल्ट या इससे अधिक हो जाता है।

उपयोग :-

(i) उच्च विभावांतर उत्पन्न करने के लिए
(ii) प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, अल्फा – कण को त्वरित करने के लिए
(iii) नाभिकीय भौतिकी के अध्ययन में

दोष :-

(i) बड़े आकार होने के कारण यह सुविधाजनक होता है।
(ii) उच्च विभव के कारण यह खतरनाक होता है।

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